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यन्म॑रुतः सभरसः स्वर्णरः॒ सूर्य॒ उदि॑ते॒ मद॑था दिवो नरः। न वोऽश्वाः॑ श्रथय॒न्ताह॒ सिस्र॑तः स॒द्यो अ॒स्याध्व॑नः पा॒रम॑श्नुथ ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yan marutaḥ sabharasaḥ svarṇaraḥ sūrya udite madathā divo naraḥ | na vo śvāḥ śrathayantāha sisrataḥ sadyo asyādhvanaḥ pāram aśnutha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। म॒रु॒तः॒। स॒ऽभ॒र॒सः॒। स्वः॒ऽन॒रः॒। सूर्ये॑। उत्ऽइ॑ते। मद॑थ। दि॒वः॒। न॒रः॒। न। वः॒। अश्वाः॑। श्र॒थ॒य॒न्त॒। अह॑। सिस्र॑तः॒। स॒द्यः। अ॒स्य। अध्व॑नः। पा॒रम्। अ॒श्नु॒थ॒ ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:54» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसे वर्त्तना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सभरसः) तुल्य पालन और पोषण करनेवाले (स्वर्णरः) सुख को प्राप्त कराते और (दिवः) कामना करते हुए (नरः) सत्य धर्म्म में पहुँचानेवाले (मरुतः) जनो ! आप लोग (उदिते) उदय को प्राप्त हुए (सूर्ये) सूर्य में (यत्) जिसको प्राप्त होकर (मदथ) आनन्दित होओ उससे (वः) आप लोगों के (सिस्रतः) चलनेवाले (अश्वाः) घोड़े (न) नहीं (श्रथयन्त, अह) हिंसा करते रुकते हैं, उनसे (अस्य) इस (अध्वनः) मार्ग के (पारम्) पार को (सद्यः) शीघ्र (अश्नुथ) प्राप्त हूजिये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य सूर्य्योदय से पहले उठ के जब तक सोवैं नहीं तब तक प्रयत्न करते हैं, दुःख और दारिद्र्य के अन्त को प्राप्त होकर सुखी और लक्ष्मीवान् होते हैं ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे सभरसः स्वर्णरो दिवो नरो मरुतो ! यूयमुदिते सूर्ये यत्प्राप्य मदथ तेन वः सिस्रतोऽश्वा न श्रथयन्ताह तैरस्याध्वनः पारं सद्योऽश्नुथ ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) ये (मरुतः) मनुष्याः (सभरसः) समानपालनपोषणाः (स्वर्णरः) ये स्वः सुखं नयन्ति ते (सूर्ये) (उदिते) उदयं प्राप्ते (मदथ) आनन्दथ (दिवः) कामयमानाः (नरः) सत्ये धर्मे नेतारः (न) (वः) युष्माकम् (अश्वाः) तुरङ्गाः (श्रथयन्त) हिंसन्ति (अह) विनिग्रहे (सिस्रतः) गन्तारः (सद्यः) शीघ्रम् (अस्य) (अध्वनः) मार्गस्य (पारम्) (अश्नुथ) प्राप्नुथ ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः सूर्य्योदयात् प्रागुत्थाय यावच्छयनं तावत्प्रयतन्ते दुःखदारिद्र्यान्तं गत्वा सुखिनः श्रीमन्तो जायन्ते ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे सूर्योदयापूर्वी उठून झोपेपर्यंत प्रयत्न करतात ती दुःख व दारिद्र्याचा नाश करतात व सुखी आणि श्रीमंत होतात. ॥ १० ॥